गजल-26

 

20150917-0005चूहे सा डरपोक पाक, खुल्ले में हरदम घबराता।

फ़िर भी उसकी तुलना कैसे भेङियों से करते हो?1॥

वे खुद को सरकारी कहते, असरकारी कैसे होंगे?

जाहिलपन की तोहमतें क्यों अफ़सरों से करते हो?2।

ताल ठोककर जग से कहते, अमृत छक कर आए हैं।

इम्तिहान उन शूरों का तुम, धमकियों से करते हो!3॥

मीरां जैसा दिल लेकर जो प्रेम श्याम से करते हैं।

उन भक्तों का मुकाबला तुम नफ़रतों से करते हो!4॥

जीवन होम कर दिया अपने देश के गौरव हित सारा।

ऐसे महापुरुष का स्वागत,  गालियों से करते हो!5॥

 

दुर्घटना से घायल तङपते जन का वीडियो ले लेते।

पशु-दानव जन की सहायता ‘हरिशों’ से करते हो।6॥

*आज ही हरीश के एक ट्रक ने दो टुकङे किए, अस्पताल ले जाते हुए अजनवी जन से हरीश ने अपने अंग-दान की अपील करके दधीचि की याद दिला दी। युवा हरीश एक कम्पनी में चौकीदार था। हरीश को श्रद्धांजलि-प्रणाम है यह रचना।*

फ़ूहङ जोक सुनाकर, सांसें भारी कर देता है जो।

ऐसे बोर जनों की तुलना जोकरों से करते हो!7॥

सारा दिन फ़िर देर रात, बुद्धू बक्से पर तुम बैठे।

अपनी कर्मठता का दावा, चीटीयों से करते हो!8॥

शर्म से चुल्लू भर पानी में डूबने की जब हालत हो।

साधक की लम्बी आयु क्यों, मन्नतों से करते हो?9॥

 

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